वैज्ञानिकों का अनुमान है कि दिल्ली में प्रदूषण के अत्यंत महीन कणों पीएम1 का स्तर 20 फीसदी तक अधिक हो सकता है

क्या दिल्ली में वायु प्रदूषण अनुमान से भी बदतर है? हालांकि पहले ही अंतराष्ट्रीय संगठन आईक्यू एयर ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है। इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकता है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि दिल्ली में प्रदूषण के अत्यंत महीन कणों पीएम1 का स्तर 20 फीसदी तक अधिक हो सकता है। इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए अध्ययन में कहा गया है कि ऐसा हवा में मौजूद नमी की वजह से होता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रदूषण के यह महीन कण हवा में मौजूद नमी को सोख लेते हैं, जिसकी वजहें से उन्हें सही तरीके से मापना मुश्किल हो जाता है।

गौरतलब है कि देश दुनिया में जब वायु प्रदूषण की बात होती है तो ज्यादातर सबका ध्यान वायु प्रदूषण के लिए काफी हद तक जिम्मेवार महीन कणों पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम10 पर ठहर जाता है। वायु प्रदूषण पर होने वाली तमाम बहसें पीएम10 और पीएम 2.5 तक ही सिमटकर रह जाती हैं। इनमें एक महत्वपूर्ण और बेहद खतरनाक कण को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिसे पीएम1 के रूप में जाना जाता है।

प्रदूषण के यह कण बेहद महीन होते हैं। यदि इंसानी बाल से इनकी तुलना करें तो यह करीब 70 गुणा अधिक महीन होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक नई दिल्ली में प्रदूषण के महीन कण पीएम1 का स्तर सुरक्षित सीमा से 24 गुणा अधिक है।

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यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के मुताबिक दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। यहां वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि वो हर दिल्लीवासी से उसके के जीवन के औसतन 10.1 साल छीन रही है।

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि प्रदूषण के कण जितने महीन होंगें, उनके द्वारा होना वाला नुकसान भी उतना अधिक होगा। ऐसे में जहां पीएम2.5 आपके फेफड़ों तक पहुंच सकता है, वहीं पीएम1 रक्त के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाता है।

अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषण के यह सूक्ष्म कण (पीएम1) नमी को सोख लेते हैं, जिससे यह फूल जाते हैं। इसकी वजह से प्रदूषण को मापने वाले उपकरण ठीक से काम नहीं कर करते और उनके लिए इन्हें मापना मुश्किल हो जाता है। नतीजन इनका स्तर वास्तविकता से कम आंका जाता है।

सर्दियों में कहीं ज्यादा खराब होती है स्थिति

बता दें कि नमी को सोखने की इस प्रक्रिया को ‘हाइग्रोस्कोपिक ग्रोथ’ कहा जाता है।

जर्नल एनपीजे क्लीन एयर में प्रकाशित अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि ऐसा खास तौर पर सर्दियों की सुबह के व्यस्त घंटों के दौरान होता है, जब वातावरण में आर्द्रता और प्रदूषण सबसे अधिक होता है।

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वहीं दूसरी तरफ मानसून के दौरान भारी बारिश नमी सोखने वाले कणों को बहा ले जाती है, इसलिए प्रदूषण का स्तर कहीं ज्यादा सटीक तरीके से मापा जाता है। लेकिन ज्यादा प्रदूषण वाले दिनों में, खास तौर पर जब नमी अधिक होती है, तो इन्हें कम करके आंके जाने की आशंका बढ़ जाती है।

बर्मिंघम विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर यिंग चेन ने पाया है कि शहर में पीएम1 का स्तर अनुमान से कहीं अधिक खराब हो सकता है। ऐसे में अध्ययन में भविष्य में प्रदूषण को सटीक रूप से मापने के बेहतर तरीके भी सुझाए गए हैं।

डॉक्टर चेन ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहा, अध्ययन दर्शाता है कि नई दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति वास्तव में कितनी गंभीर है। साथ ही अध्ययन में इसे सटीक तरह से मापने के लिए एक रुपरेखा भी प्रदान की गई है। इससे स्वास्थ्य योजनाओं और समाधानों को बेहतर तरीके से लागू करने में मदद मिल सकती है।”

उनके मुताबिक यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि आद्रता प्रदूषण के स्तर को कैसे प्रभावित करती है, ताकि इसका सही आंकलन किया जा सके।

शोध के मुताबिक नई दिल्ली में ‘हाइग्रोस्कोपिक ग्रोथ’ की वजह से माप में आया अंतर बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां मौजूद सूक्ष्म कण बहुत अधिक नमी सोख लेते हैं। अनुमान है कि इनमें 740 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक जल हो सकता है। यह दुनिया के महानगरों में सबसे अधिक है।

शोध में यह भी सामने आया है कि वायु प्रदूषण और उसकी माप पर मौसम का असर भी पड़ता है।

शोध से पता चला है कि प्रदूषण के आंकलन में सबसे ज्यादा गड़बड़ी सर्दियों के दौरान दिसंबर से जनवरी के बीच सुबह के व्यस्त समय (आठ से नौ बजे) होती है। इस दौरान नमी और प्रदूषण दोनों ही चरम पर होते हैं। अध्ययन के मुताबिक इस दौरान प्रदूषण की माप 20 फीसदी तक कम हो सकती है। मतलब की इस दौरान पीएम1 का स्तर औसतन 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक कम आंका जा सकता है।

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सुबह के इस समय मौसम में आद्रता 90 फीसदी तक हो सकती है, जो प्रदूषण को जमीन के करीब रोके रखती है।

वहीं फरवरी से में बसंत के दौरान सबह के व्यस्त समय में जब आद्रता करीब 80 फीसदी होती है, तो उस समय प्रदूषण की माप में 8.6 फीसदी की गड़बड़ी हो सकती है।

इसके विपरीत मानसून (जुलाई से सितम्बर) के दौरान आंकलन कहीं ज्यादा सटीक होता है। आद्रता के 85 फीसदी होने के बावजूद, इस दौरान बारिश प्रदूषण के कणों को धो देती है, जिससे माप सम्बन्धी त्रुटियां कम रहती हैं। गर्मियों में अप्रैल से जून के बीच जब मौसम शुष्क रहता है तो आद्रता 28-50 फीसदी के बीच होती है। ऐसे में इस समय प्रदूषण के माप अधिकतर सटीक रहते हैं।

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प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं 3.3 करोड़ दिल्लीवासी

यह नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है, जहां 3.3 करोड़ लोग दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। यह प्रदूषण हर गुजरते दिन के साथ इन लोगों को कहीं ज्यादा बीमार बना रहा है। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रदूषण के महीन कण हर साल दस हजार लोगों की जान ले रहे हैं।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने लकड़ी और घरेलू ईंधन जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम करने का सुझाव दिया है, क्योंकि वे अत्यधिक नमी सोखने वाले कण (हाइग्रोस्कोपिक क्लोरीन) छोड़ते हैं। इनकी रोकथाम से वायु गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और प्रदूषण के माप अधिक सटीक हो सकते हैं।

इसके साथ ही डॉक्टर चेन ने नई दिल्ली में वायु प्रदूषण को बेहतर ढंग से समझने के लिए पीएम2.5 और पीएम10 की प्रत्यक्ष निगरानी को बढ़ाने का भी आग्रह किया है।

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