हृदेश कुमार तिवारी
निवाड़ी. जिले के ओरछा स्थित रामराजा सरकार मंदिर में 500 वर्षों से भगवान को राजा के तौर पर सलामी देने की परंपरा अनवरत जारी है. भगवान रामराजा को चारों पहर मध्य प्रदेश पुलिस के जवान सशस्त्र सलामी देते रहे हैं लेकिन एक आदेश के बाद से सलामी की परंपरा में पुलिस ने कुछ बदलाव किए हैं. अब सलामी देने वाले जवान की बंदूक के आगे लगे बेनेट यानी चाकू को हटा दिया गया है. इसको लेकर श्रद्धालुओं ने सवाल उठाए हैं.

जानकारी में बताया है कि पहले रामराजा सरकार को जिन बंदूकों से सलामी दी जाती थी उन पर आगे बेनेट लगा होता था, लेकिन सुरक्षा कारणों के चलते इन बेनेट को यानी चाकू को बंदूक से हटा दिया गया है. राम राजा सरकार को सलामी देने की परंपरा 500 वर्ष पुरानी है. यहांं संत्री द्वारा भगवान को सलामी दी जाती है जो की दिनभर मंदिर में उपस्थित रहता है. नए बदलाव करने के पीछे मुख्य कारण सुरक्षा बताया गया है.

मंदिर की भीड़ में किसी के साथ न हो जाए दुर्घटना
तहसीलदार ओरछा व मंदिर व्यवस्थापक सुमित गुर्जर का कहना है कि मंदिर में बढ़ती भीड़ और कहीं संत्री किसी वजह से अपना आपा खोकर इसका गलत उपयोग ना कर लें, इसलिए एहतियातन निवाड़ी पुलिस अधीक्षक ने इस व्यवस्था में बदलाव किया है और बंदूक के आगे से बेनेट को हटवाया है. इधर, श्रद्धालुओं का कहना है कि भीड़ और दर्शनार्थी तो हॉल में रहते हैं जबकि संत्री, तो उनसे कहीं दूर रामराजा सरकार की सुरक्षा में रहता है, ऐसे में बेनेट संबंधी लिया गया निर्णय पूरी तरह गलत है.

परंपरा के खिलाफ है निर्णय, तुरंत वापस हो ऐसा आदेश
स्थानीय निवासी अखिलेश नारायण समेले का कहना है कि भगवान को बंदूक में बेनेट लगाकर सलामी देने की परंपरा 500 वर्ष पुरानी है. आज तक इतने वर्षों में किसी भी दर्शनार्थी को बेनेट से चोट नहीं आई और न ही कोई घटना हुई है. इस तरह का निर्णय गलत है, परंपरा के खिलाफ है इसको वापस लेना चाहिए. हैरानी की बात है कि सशस्‍त्र संगीन की सलामी की परंपरा बदल दी गई; यह तो एक प्रकार का अपमान है.

अभी कुछ दिनों पहले ही बढ़ाए गए थे जवान
तहसीलदार ओरछा व मंदिर व्यवस्थापक सुमित गुर्जर ने बताया कि भगवान श्री राम राजा सरकार को पहले केवल एक पुलिस जवान गार्ड ऑफ ऑनर दिया करता था. जवान की बंदूक में बेनेट लगा रहता था और वह पूरे समय जब तक मंदिर खुलता है तब तक मंदिर के बाहर पहरा देता था. कुछ दिन पूर्व कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा ने परंपरा को वृहद रूप देने के लिए 1-4 की गार्ड से इस परंपरा का निर्वहन करवाना शुरू किया जिसमें बीच मे खड़े एक गार्ड की बंदूक में बेनेट रहती थी और शेष अन्य बिना बेनेट के सलामी देते थे. दिन भर पहरे के लिए एक गार्ड तैनात रहता था.

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